मंगलवार, 28 मई 2019

माना घना अँधेरा ....

माना घना अँधेरा बना हुआ है,
पर उम्मीद अभी है मन में,
निशा कभी तो छटेगी वन में,
यह उम्मीद अभी है मन में,
आएंगी किरणें दिनकर की
ऐसी आश जगी है मन में,
कभी तो मैं भी जीत सकूँगा,
ऐसी जीत हुई है मन में,
एक हार से मैं क्यों हारूँ,
आस जीत की जगी है मन में,
माना घना अँधेरा अभी हुआ है,
पर उम्मीद अभी है मन में,
सबने है ठुकराया मुझको,
पर इक आशा अभी है मन में,
कोई तो होगा ही मेरा,
ऐसी आस जगी है मन में,
जब मैं सपनों को पाऊंगा,
हारी बाजी जीत आऊंगा,
शायद दुनिया तब अपनाएँ,
ऐसी आशा जगी  है मन में,
इक दिन सबकी आँखों का ,
तारा बन कर चमक जाऊंगा,
ऐसी आस जगी है मन में...

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