सोमवार, 20 मई 2019

क्या तुम्हें पता नहीं???

हर मुलाकात पर,
एक ही बात पूछती हो,
मेरे संग तुम,
सपनों की रात देखती हो,
मेरे न होने पर,
तुम जो घबराती हो,
और मेरे होने पर,
अनजान जो बन जाती हो,
फिर भी हर बार,
एक ही सवाल पूछती हो,
क्या तुम्हे पता नहीं,
तुम मेरी क्या कहलाती हो,
मुझे अपने रंग में,
सुन्दर सा सजाती हो,
मेरी हर बात को बेवज़ह,
तुम जो मानती हो,
मेरे ख्याबों पर अब,
अपना हक जताती हो,
मेरी हर कमी को,
मुझसे दूर भगाती हो,
न मिलने पर तुम,
जरा सा घबराती हो,
मिलने पर खिलखिलाकर,
यूँ ही जो मुस्कराती हो,
फिर भी हर बार,
यही बात दोहराती हो,
क्या तुम्हे पता नहीं,
तुम मेरी क्या कहलाती हो?
अपनी सारी बातें,
मुझसे ही बताती हो,
मेरे नाराज़ होने पर,
आँसू जो बहाती हो,
मेरे करीब आकर भी,
दूर जो चली जाती हो,
शायद ऐसे ही मुझसे,
अपना प्यार जताती हो,
मुझे कुछ कहने पर,
दुनिया से भीड़ जाती हो,
मेरे गुस्सा होने पर,
हक़ से समझाती हो,
फिर भी हर बार,
यही बात दोहराती हो,
क्या तुम्हें पता नही,
तुम मेरी क्या कहलाती हो?
मेरे हर दर्द में,
मलहम सा बन जाती हो,
मेरी सादगी को,
बिन कुछ कहे अपनाती हो,
मेरे साथ किसी और,
का जिक्र होने पर,
तुम जो थोड़ा घबराती हो,
फिर मुझे आँख दिखाकर,
अपने पास बुलाती हो,
और जब पास होता हूँ तो,
दूर चली जाती हो,
फिर भी हर बार,
एक ही बात दोहराती हो,
क्या तुम्हें पता नहीं,
तुम मेरी क्या कहलाती हो????

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