मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

अधूरा लफ़्ज

अब तो चाँद तारों से,
रोज बात होने लगी है,
उगते सूरज की वो चाय,
मोहतरमा की याद में आकर,
अक्सर ठण्डी होने लगी है,
हर रात सिरहाने पर,
उनकी मीठी यादें दबाए,
मैं गुजारने लगा हूँ,
सुन लो ऐ चाँद सितारों,
मै भी अब किसी से,
इश्क़ फरमाने लगा हूँ,
ढलता सूरज, उनकी याद,
मेरी नादानी हो गई है,
मेरे पहले प्यार की,
यही कहानी हो गई है।।।।
© अधूरा लफ्ज़
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गुरुवार, 31 मई 2018

हंसता था तो.......

हंसता था तो लोग,
मुझे रूलाने आते थे,
गाता था तो लोग,
मुझे चुप कराते थे,
कुछ ऐसा था मुझमें,
कि लोग अक्सर मुझमें,
कुछ कमियां निकालते थे,
लोग कहते मुझसे अक्सर,
अपने मन की करो,
जब मन की करता,
तो लोग जाने क्यूं,
मुझसे नाराज़ हो जाते,
फिर भी मैं अक्सर,
हंसकर था टाल देता,
दुनिया के धक्के हम तो,
हंसकर था सम्भाल लेता,
पर अब मैं भी,
टूट सा गया हूं,
मेरी जिंदगी तुझसे मैं,
अब रूठ सा गया हूं।।।।।
Vatsalyshyam

मंगलवार, 29 मई 2018

तुम ना आते

तुम ना आते तो,
जिंदगी में कोई गम ना होता,
अक्सर मैं यूं अकेला गुमसुम,
किसी कोने में ना सोता,
तुम ना आते तो,
कोई यूं मुझे बदनाम ना करता,
तेरे मेरे चर्चे यूं सरेआम ना करता,
अच्छा होता जो तुम ना आते,
कम से कम मैं हंसता तो होता,
तुम ना आते तो बेरूखा सा,
अपनी जिंदगी को यूं सूखा सा,
अक्सर तेरी यादों में आके,
अपनी आंखों को जल से भीगा के,
तेरे ख्यालों में रात भर ना होते,
तुम ना आते तो जिंदगी का,
अंदाज ही अलग मेरे होता.....
Vatsalyshyam

रविवार, 6 मई 2018

मुश्किलों सा जीवन अपना

मुश्किलों सा जीवन अपना,
कैसे तुम्हें बताऊं मैं?
विद्यार्थी जीवन है अपना,
कैसे तुम्हें दिखाऊं मैं?
कभी हार है, कभी जीत है,
इससे सच्ची न कोई प्रीत है,
चाहत है उन्मुक्त गगन के,
उन शिखरों पर चढ़ जाऊं मैं,
मुश्किलों सा जीवन अपना,
कैसे तुम्हें दिखाऊंमैं?
कहीं छिपाता, कहीं दिखाता,
नित नए ये सपने सजाता,
उन सपनों के खंडन पर,
खुद को विचलित पाऊं मैं,
मुश्किलों सा जीवन अपना,
कैसे तुम्हें दिखाऊं मैं?
मेरी हार पर जग हंसे है,
शब्द न फूटे, जब शिखर पाऊं मैं,
हार जीत तो होती रहती,
दुनिया को क्यों समझाऊं मैं,
मुश्किलों सा जीवन अपना,
कैसे तुम्हें दिखाऊं मैं?
कुछ न बोलूं उस वक्त तक,
जब तक सपने न पाऊं मैं,
मुश्किलों सा जीवन अपना,
कैसे तुम्हें दिखाऊं मैं???
#vatsalyshyam

शुक्रवार, 4 मई 2018

तेरे इशारों को...

तेरे इशारों को मैं,
समझ न पाता हूं,
क्योकिमैं तुझे देखते ही,
कहीं और खो जाता हूं,
लोग जाने कैसे करते हैं,
इज़हार-ए-इश्क,
मैं जब भी सोचता हूं तो,
डरकर वापस आ जाता हूं,
डरता हूं कि कहीं,
तू मुझे बदनाम न कर दे,
मेरे इश्क के लफ़्ज़ों को,
तू सरेआम न कर दे,
कह दे तू वही बात,
जो मैं नहीं चाहता हूं,
बिछड़ने से डर लगता है,
इसीलिए कभी कह न पाता हूं,..........
#vatsalyshyam

इक याद...

कैसे कहूंगा किसी और से,
तेरे बिना अधूरा हूं,
हमने जो ख्वाब देखा था,
उनके बगैर मैं पूरा हूं,
कैसे कहूंगा अपनी खुदगर्जी से,
मैं तो निकल चुका हूं,
तेरे बिना मेरी पंडिताइन,
मैं चाहकर भी न पूरा हूं,
कैसे बचूंगा उस शाम से,
जो याद तेरी दिलाएगी,
तेरे बगैर मेरी जिंदगी,
मुझे नींद कहां आएगी,
उस वक्त मैं रो पडूंगा,
जब याद तेरी आएगी,
दिल से मैं क्या कहूंगा,
मैं तो बदल चुका हूं,
उन पतझड़ो के मौसम से,
मैं तो संभल चुका हूं,
धड़कनों से क्या कहूंगा,
जब हाल तेरा ये पूछेंगी,
कैसे कहूंगा उन से मैं,
हमको खबर न उनकी,
जिनके बगैर मेरी,
सांसें कभी न चलती,
कैसे कहूंगा मैं खुद से,
हममें इतनी गुरबत न थी,
दुनिया से लड़कर मैं कहता,
पगली तू ही सही थी............
#vatsalyshyam

रविवार, 15 अप्रैल 2018

कहना है वो बात

कहना है वो बात तुम्ही से,
जो आज तक न कह पाया,
तेरे बगैर मेरी जिंदगी,
अकेला कहीं न रह पाया,
लोग कहते है मैं पागल हूं,
मुझे किसी ने सरफिरा बताया,
सच तो ये है कि,
तेरी रूसवाई ने मुझे पागल बनाया,
जब भी तेरी जुबां पर,
किसी और का ख्याल आया,
उस पल, उस दिन,
उस घड़ी ने मुझे रूलाया,
तेरी आंखों की मदहोशी ने,
अक्सर हमें रात भर जगाया,
तेरी कोयल सी आवाज ने,
हमें सुबह जल्दी उठाया,
पूरी दुनिया झूम उठी,
उस गाने पर भी,
जो हर सुबह उठकर,
मैंने तेरे लिए गुनगुनाया,
लोग कहते है कि,
मुझे नींद नहीं आती,
कैसे कहूं कि तूने,
वात्सल्य की नींद को चुराया,
कहना है वो बात तुम्ही से,
जो आज तक न कह पाया,
तेरे बगैर पंडिताईन,
वात्सल्य न रह पाया।।।।।

#vatsalyshyam

मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

विप्लव के बादल..

विप्लव के बादल क्यों है खटक?
वन उपवन के घनघोर घटक,
जब सच्ची बारिश होती है,
तब गरज कहीं पर सोती है,
जो धागे सच्चे होते हैं,
वो कसने से न टूटे हैं,
आंखों में तुम्हारे सपने थे,
जो जगने से अब टूटे हैं,
समुन्दर के उन गोतों से,
मोती ही तो अब छुटे हैं,
अक्सर ये फरेब ही होता है,
चंचलता में हर कोई खोता है,
पर सुबह का भूला रात तक,
घर आकर ही तो सोता है,
विप्लव के बादल क्यों है खटक
वन उपवन के घनघोर घटक...
#vatsalyshyam

रविवार, 8 अप्रैल 2018

बेटियां

आज कल हर क्षेत्र में,
सर्वोच्च है ये बेटियां,
पढ़ रही है बेटियां,
बढ़ रही हैं बेटियां,
ओलंपिक में भारत की,
लाज ये बचाती हैं,
कामनवेल्थ गेम्स में,
स्वर्ण को दिलाती हैं,
एशिया की हाकी का,
खिताब घर को लाती हैं,
कुश्ती में नाम करके,
धाकड़ कहलाती हैं,
दसवीं हो या बारहवीं,
टाप ये ही करती हैं,
पर्वतों को पार करके,
अरूणिमा सिन्हा बनती हैं,
खेल पढ़ाई हो या,
घर का हो कोई काम,
निपुणता में नारी शक्ति,
रच रही हैं कीर्तिमान,
वात्सल्य के मन की,
बस यही अभिलाषा है,
और अच्छे काम करके,
नारी शक्ति बने महान।।।।।

#vatsalyshyam

शनिवार, 7 अप्रैल 2018

इक लड़की थी।

इक लड़की थी, जो आती थी,
मुझको बहुत वो भाती थी,
हमको था पता जो चौपाटी थी,
हर रोज वहां वो जाती थी,
हर रोज बदलती किरणों संग,
वो रंग बदलकर आती थी,
कभी नीली थी, कभी पीली थी,
वो कुहु जैसा चहकाती थी,
वो हसती थी, मुस्काती थी,
मेरे मन को जो भाती थी,
मुझको न खबर जो आती थी,
किसी और की वो साथी थी,
जो आती थी, वो आती है,
मुझको अब भी वो भाती है.....

To be continues.
#vatsalyshyam

गुरुवार, 15 मार्च 2018

क्या हुआ था बीते कल में.....

क्या हुआ था बीते कल में,
क्यों सोच मुसाफिर न बढ़ता,
जब चलता है तो डरता है,
पग दृढ़ता से न रखता है,
पांवों में फिर से चोट लगे,
या फिर से प्यासा गला जले,
पर अबकी न पग थकना है,
मंजिल मिलने तक न रूकना है,
हर दिन इक नया सवेरा है,
विप्लव ने जिसको घेरा है,
जो बिखर गया था घर अपना,
अब उसको हमने समेटा है,
माना मन में कुछ शंका है,
इस जग ने जिसे कुरेदा है,
पर मन की यही अभिलाषा है,
पूरी करनी यह आशा है,
छोटी चिड़िया क्या रूकती है,
जब हवा ने उसका घर तोड़ा,
या इक हार से डरकर,
वीर प्रताप ने लड़ना छोड़ा,
फिर से बना आशियाना था,
नन्ही चिड़िया ने ठाना था,
राणा ने भी चित्तौड़ फिर,
विजय पताका ताना था।।।।।।

#vatsalyshyam

बुधवार, 14 मार्च 2018

विप्लव के दीपक प्रौढ़ रे..........

चल अपने पथ की ओर रे,
विप्लव के दीपक प्रौढ़ रे,
कल तक जब कहीं सहारा था,
जीवन में सबकुछ प्यारा था,
घनघोर घटा अब आई है,
विपदा के बादल लाई है,
जो साथ तुम्हारे होते थे,
इस मन के जो मनुहारे थे,
विप्लव के काले बादल ने,
उन सबको है तोड़ दिया,
पत्तों वाला वो आशियाना भी,
काले बादल ने तोड़ दिया,
जिनको तुमने सूरज माना ,
चंदा के संग तारा जाना,
वो दिनकर के संग डूब गए,
तारों के संग टूट गए,
वो काल के संग छूट गए,
विपदा के संग वो टूट गए,
विप्लव के दीपक प्रौढ़ रे,
चल अपने पथ की ओर रे!!!!
#vatsalyshyam

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

चल आज वहां हम चलते हैं.....

जहां मधुकर की तान चढ़ी थी,
भंवरों का नीतगान चढ़ा था,
जहां की रज में खेलकूद कर,
हम सबका सम्मान बढ़ा था,
जहां रोज़ हम शैतानी से,
जीवन की उस बचकानी से,
नित नए खेल को बुनते थे,
फिर उसे खेलकर लड़ते थे,
जहां की रज हमें याद दिलाती,
कच्ची सड़कें जहां हमें बताती,
दिनकर के संग लिए बैल को,
किसान जहां खेतों को जाते,
जहां हमारा भाव जुड़ा था,
सपनों का संसार जुड़ा था,
दादी की उस लोरी में भी,
दुनिया का कुछ ज्ञान छिपा था,
जहां किसी से बैर नहीं था,
जहां काम का सैर नहीं था,
जहां घरों में सीमा न थी,
खेल के लिए गलियां न थी,
चल आज वहां हम चलते हैं,
गांवों की तरफ हम बढ़ते हैं.....

Going to village after 6 month...
@vatsalyshyam

सोमवार, 22 जनवरी 2018

कैसे कहूं 2

Upहम दोनों भी कितने बेगाने है,
सच कहने से इतराते हैं,
कभी तुम भी तो घबराती हो,
कभी हम भी तो डर जाते हैं,
तुम नज़र जो मुझसे मिलाती हो,
फिर धीरे से मुस्काती हो,
सच कहता हूं ये तेरा मुस्काना अच्छा लगता है,
उस पर भी यूं नजर घुमाना ,
मुझको घायल कर देता है,
हर सूरज के संग उठता हूं तो,
मन में खयाल ये लाता हूं,
कह दूंगा तुमसे प्यार है,
ऐसा पहली ही बार है,
तुम रोज सुबह जब आती हो,
मेरा नींद उडा़ ले जाती,
पर मैं ये न‌ कह पाता ,
हर दिन बिन कहे ही घर जाता हूं।।।

कैसे कहूं

कहना तो बहुत कुछ है,
पर कह नहीं पाता हूं,
तेरे बगैर अब कहीं रह नहीं पाता हूं,
यादें तेरी हरपल मुझे सताती है,
किससे कहूं कि तेरे बगैर अब रह नहीं पाता हूं,
लोग सोचते हैं कि मैं बीमार हुं,
इसीलिए हर रोज डाक्टर बुलाते हैं,
कैसे कहूं कि ये बीमारी लाइलाज है,
चाहकर भी ये बात किसी से कह नहीं पाता हूं,
दिन भर तो तू साथ होती है,
पर रातों को अक्सर उठकर बैठ जाता हूं,
लोग समझते हैं कि मुझमें आक्सिजन की कमी है,
पर मैं तो तेरे बगैर खुली हवा में भी सांस ले न पाता हूं,
कैसे कहूं कि तेरे बगैर जिन्दगी अधूरी है,
उस अधूरेपन में तूझे ही पाता हूं।

@Vatsalyshyam.

सोमवार, 15 जनवरी 2018

भारत की जय।

देश की सत्ता पाने को,
हर ओछा भाषन कह बैठा,
आरक्षण का भीख मांगता,
हार्दिक भी नेता बन बैठा,
कही लड़ाते धरम करम पर,
कहीं जात दिखलाते हैं,
कुछ मजहब के नाम पर,
दंगा भी करवाते हैं,
राम लड़े जो रहमान से,
मजहब का सम्मान बताते हैं,
कुछ नेता हैं जो धरम को अपने,
देश से ऊंचा बताते हैं,
हिन्दू मुस्लिम सब लड़े हैं,
जातिवाद के नारों पर,
सत्ता की खातिर इनको,
नेता जी ने बांटे हैं,
सेना की न कोई जय कहता,
कुछ वंन्दे मातरम् न गाते हैं,
भारत तेरे टुकड़े कहने वाले,
खालिद भी नेता कहलाते हैं,
वो दंगों पर न कुछ बोले,
जो विकास - विकास चिल्लाते हैं,
भारत की जय बोलने से,
कुछ नेता भी कतराते हैं,
दलित-मराठा-जाट लड़े हैं,
आरक्षण की थाली पर,
पिक्चर भी तो लटक गई थी,
इक सेना की अभिमानी पर,
तुम अडिग रहो हर मंजिल पर,
ऐसा न कहने वाला है,
लगता है देश में न कोई,
भगत सिंह बनने वाला है,
जो लहू बह रहा बार्डर पर,
न उसकी कोई जय कहता,
जज साहब क्युं न नेता,
वीर शहीदों का नमन करता,
अभिनेता मरे तो दस दिन तक,
शोक-शोक चिल्लाते हैं,
भारत की रक्षा करने वालों का,
बलिदान भी न दिखाते हैं,
शर्म करो अब तुम भी तो,
भारत के पुत्र कहलाते हो,
कभी शहीदों का तुम भी,
बलिदान क्युं न गाते हो?,
चलो बदलते हैं देश को,
इक फूल ही तो चढ़ाते हैं,
वन्दे मातरम् के उदघोष से,
तिरंगा अपना फहराते हैं!!!
जय हिन्द जय भारत।।।
@vatsalyshyam

गुरुवार, 4 जनवरी 2018

सिर्फ चाहूं तुझे...

सिर्फ चाहूं तुझे या,कह दूं कभी,
रोज आती जो हो तुम,मेरे दिल की गली,
सच कहूं तो तुम ही हो,मेरे होंठों की हसी,
जो कभी आती हो,सांझ के रांझ में,
मैं यूं ही भूल जाता हूं,खुद को कभी,
सिर्फ चाहूं तुझे या,कह दूं कभी।
लोग कहते है ऐसा,चाह ही राह है,
बिन तेरे जिन्दगी,न कोई चाह है,
तू जो कर दे इशारा,मैं समझ जाऊंगा,
तेरे लिए मेरी राधा,श्याम कहलाऊंगा,
तू अभी फूल है,जो खिली है अभी,
तू कह दे जो हां,भंवरा बन जाऊंगा,
सिर्फ चाहूं तुझे या,कह दूं कभी!!!!
@vatsalyshyam

सोमवार, 1 जनवरी 2018

शहीदों को नमन

जी माफी चाहते है यदि किसी को बुरा लगा हो तो लेकिन
जहां एक और देश ने
5सपूतो को खो दिया
किसी के घर का चिराग
किसी के मांग का सिंदूर मिट गया
कितने बच्चे अनाथ हुए और
मेरे देश के लोग
ऐसे नववर्ष की मौज मनाये
{जो अपना है भी नही}
सरकार के नही
वो हिंदुस्तान के #प्रहरी हैं
#शहीदों_को_नमन
@vatsalyshyam

मेरी बात