सोमवार, 22 जनवरी 2018

कैसे कहूं 2

Upहम दोनों भी कितने बेगाने है,
सच कहने से इतराते हैं,
कभी तुम भी तो घबराती हो,
कभी हम भी तो डर जाते हैं,
तुम नज़र जो मुझसे मिलाती हो,
फिर धीरे से मुस्काती हो,
सच कहता हूं ये तेरा मुस्काना अच्छा लगता है,
उस पर भी यूं नजर घुमाना ,
मुझको घायल कर देता है,
हर सूरज के संग उठता हूं तो,
मन में खयाल ये लाता हूं,
कह दूंगा तुमसे प्यार है,
ऐसा पहली ही बार है,
तुम रोज सुबह जब आती हो,
मेरा नींद उडा़ ले जाती,
पर मैं ये न‌ कह पाता ,
हर दिन बिन कहे ही घर जाता हूं।।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरी बात