रविवार, 28 अप्रैल 2019

इक लड़की थी-2

इक लड़की थी, जो शर्माती थी,
मेरे ख्याब में अक्सर आती थी,
कभी हसती थी, कभी गाती थी,
वो हर रंग में भाती थी,
वो बोली थी जरा सुनते हो,
सपने संग न बुनते हो,
हमने सोचा ये बात सही,
इनका ये जज़्बात सही,
शायद सपने अब पूरे हो,
मेरे मन में जो अधूरे हो,
पर सपना मेरा अधूरा था,
बिन उसके संग न पूरा था,
हमने पूछा क्यों साथ चले,
वो न करके इठलाई थी,
पर उसकी न में भी,
आंखें कुछ तो कह जाती थी,
उन आँखों में वो बात छिपा था,
जो वो मुझसे छिपवाती थी,
वो लड़की जो शर्माती थी,
किसी और कि वो साथी थी,
हमको न खबर जो आती थी,
वो संग किसी के मुस्काती थी,
जो आती थी, वो आती है,
अब भी मुझको वो भाती है,
हर रोज़ बदलती किरणों संग,
वो साथ बदलकर जाती है....

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