सोमवार, 2 सितंबर 2019

अनकही दास्ताँ

आज यूँ ही मुझे तेरी याद आ गई,
वो यादें जो कुछ दिन के लिए ही,
पर मेरे जिंदगी का एक अहम हिस्सा है,
चाहे मैं दुख में रहूँ या सुख में,
उन यादों को याद किए बगैर,
मेरी रात कटती नही है,
याद है न जब हमें किसी का,
डर नही  होता था,
तुम मेरी आँखों के सामने,
और मैं तुम्हारे दिल में होता था,
क्या दिन क्या रात,
हर वक़्त बस तेरी बात,
पुरे मोहल्ले को पता था कि,
हमें करनी है आपसे बात,
वही बात जो सब जानते थे,
सब तुमको हमारा मानते थे,
अक़्सर तुम्हारा नाम लेकर,
लोग हमें सताते थे,
और हम भी तो,
 तुम्हारे नाम को  सुनकर,
बेवज़ह मुस्कुरातें थे ,
याद है तुम्हे वो जब मैं रूठा था,
बिना कुछ कहे मैं तुमसे टूटा था,
तुमने मुझे बड़े प्यार से समझाया था,
और बिन कुछ कहे इशारों में,
हमे उस बात को बताया था
 ऐसे ही कुछ बीते लम्हों  को,
आज भी मैं जब याद करता,
कभी रोता तो कभी हँस पड़ता,
पर आज भी मेरे दिल में,
बस तू ही बसती है,
चाहे जो आये मेरी जिंदगी,
तेरे सिवाय मेरी आँखों को,
कोई और  न जंचती है.....

अनकही दास्ताँ.....


वात्सल्य श्याम

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