रात जुगनु में जिसको उजाला दिखे,
दोपहर को अंधेरा वो बताता रहा,
जो स्वयं में समर्पण सुन लो प्रिये,
वो स्वयं को स्वयं भू बताता रहा,
जग ये जिसको अनुपम अनूठा कहे,
फूटी क़िस्मत वो खुद की बताता रहा,
ध्येय का देवता जग ये कहता रहे,
ऐसा कुछ भी नही वो बताता रहा,
जिसके पीछे है देखो दुनिया चले,
खुद को वो अकेला क्यूँ कहता रहा,
जिसको खाने में है देखो सब कुछ मिले,
बासी रोटी की लालच वो करता रहा,
जिसके पैरों में मखमल का गद्दा बिछे,
काँटों पर ही अक्सर वो चलता रहा,
जिसका वैभव स्वयं लक्ष्मी है कहे,
वो स्वयं को यूँ निर्धन बताता रहा,
जग ने जिसको अपना सबकुछ दिया,
मोह माया वो जग को बताता रहा,
वेदना क्या उसे जग क्या अब कहे,
ख़ुद को दोषी व कायर वो कहता रहा,
चाहे दुःख हो उसे चाहे सुख हो उसे,
यादकर वो तुम्हे सब यूँ सहता रहा,
लक्ष्य जिसके कदम चूम जाती रहे,
वो स्वयं को मुसाफ़िर समझता रहा,
रात जुगनु में जिसको उजाला दिखे,
दोपहर को अँधेरा वो बताता रहा।।।।।।।
धन्यवाद
दोपहर को अंधेरा वो बताता रहा,
जो स्वयं में समर्पण सुन लो प्रिये,
वो स्वयं को स्वयं भू बताता रहा,
जग ये जिसको अनुपम अनूठा कहे,
फूटी क़िस्मत वो खुद की बताता रहा,
ध्येय का देवता जग ये कहता रहे,
ऐसा कुछ भी नही वो बताता रहा,
जिसके पीछे है देखो दुनिया चले,
खुद को वो अकेला क्यूँ कहता रहा,
जिसको खाने में है देखो सब कुछ मिले,
बासी रोटी की लालच वो करता रहा,
जिसके पैरों में मखमल का गद्दा बिछे,
काँटों पर ही अक्सर वो चलता रहा,
जिसका वैभव स्वयं लक्ष्मी है कहे,
वो स्वयं को यूँ निर्धन बताता रहा,
जग ने जिसको अपना सबकुछ दिया,
मोह माया वो जग को बताता रहा,
वेदना क्या उसे जग क्या अब कहे,
ख़ुद को दोषी व कायर वो कहता रहा,
चाहे दुःख हो उसे चाहे सुख हो उसे,
यादकर वो तुम्हे सब यूँ सहता रहा,
लक्ष्य जिसके कदम चूम जाती रहे,
वो स्वयं को मुसाफ़िर समझता रहा,
रात जुगनु में जिसको उजाला दिखे,
दोपहर को अँधेरा वो बताता रहा।।।।।।।
धन्यवाद