बुधवार, 25 दिसंबर 2019

जो स्वयं में समर्पण

रात जुगनु में जिसको उजाला दिखे,
दोपहर को अंधेरा वो बताता रहा,
जो स्वयं में समर्पण सुन लो प्रिये,
वो स्वयं को स्वयं भू बताता रहा,
जग ये जिसको अनुपम अनूठा कहे,
फूटी क़िस्मत वो खुद की बताता रहा,
ध्येय का देवता जग ये कहता रहे,
ऐसा कुछ भी नही वो बताता रहा,
जिसके पीछे है देखो दुनिया चले,
खुद को वो अकेला क्यूँ कहता रहा,
जिसको खाने में है देखो सब कुछ मिले,
बासी रोटी की लालच वो करता रहा,
जिसके पैरों में मखमल का गद्दा बिछे,
काँटों पर ही अक्सर वो चलता रहा,
जिसका वैभव स्वयं लक्ष्मी है कहे,
वो स्वयं को यूँ निर्धन बताता रहा,
जग ने जिसको अपना सबकुछ दिया,
मोह माया वो जग को बताता रहा,
वेदना क्या उसे जग क्या अब कहे,
ख़ुद को दोषी व कायर वो कहता रहा,
चाहे दुःख हो उसे चाहे सुख हो उसे,
यादकर वो तुम्हे सब यूँ सहता रहा,
लक्ष्य जिसके कदम चूम जाती रहे,
वो स्वयं को मुसाफ़िर समझता रहा,
रात जुगनु में जिसको उजाला दिखे,
दोपहर को अँधेरा वो बताता रहा।।।।।।।

धन्यवाद

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

अपने दिल से हम

अपने दिल से अब हम भुलाने लगे,
बढ़ गई दूरियाँ दूर जाने लगे,
वो किसी संग जो नज्र आने लगे,
उनके बिन अब हम गुनगुनाने लगे,
तुम बिन माना संगम अधूरा रहे,
फिर भी ख़ुद से तुमको मिटाने लगे,
दूरियाँ बढ़ गई दूर जाने लगे।1।

सुन लो तुमने किया जो खुदगर्ज था,
मैं कहा तो नही जो मेरा दर्द था,
उस दर्द ए जिगर को मिटाने लगे,
बढ़ गई दूरियाँ दूर जाने लगे।2।

कुछ तुम्हारी वजह जान ये जान लो,
कुछ थी मेरी सजा जान अब मान लो,
हम जुदा जो हुए तो वजह ये बनी,
मेरी बातों में तुम  हक़ जताने लगे,
अपने दिल से अब हम भुलाने लगे,
दूरियाँ बढ़ गई दूर जाने लगे।3।

अब न चैनों अमन मेरे दिल को मिले,
तुम बिना श्याम बूझो कैसे जिए,
सांस तुमको बनाया उसी सांस को,
सुन लो अब ये सितमगर दबाने लगे,
अपने दिल से अब हम भुलाने लगे,
दूरियाँ बढ़ गई दूर जाने लगे।4।


मेरी बात