क्या हुआ था बीते कल में,
क्यों सोच मुसाफिर न बढ़ता,
जब चलता है तो डरता है,
पग दृढ़ता से न रखता है,
पांवों में फिर से चोट लगे,
या फिर से प्यासा गला जले,
पर अबकी न पग थकना है,
मंजिल मिलने तक न रूकना है,
हर दिन इक नया सवेरा है,
विप्लव ने जिसको घेरा है,
जो बिखर गया था घर अपना,
अब उसको हमने समेटा है,
माना मन में कुछ शंका है,
इस जग ने जिसे कुरेदा है,
पर मन की यही अभिलाषा है,
पूरी करनी यह आशा है,
छोटी चिड़िया क्या रूकती है,
जब हवा ने उसका घर तोड़ा,
या इक हार से डरकर,
वीर प्रताप ने लड़ना छोड़ा,
फिर से बना आशियाना था,
नन्ही चिड़िया ने ठाना था,
राणा ने भी चित्तौड़ फिर,
विजय पताका ताना था।।।।।।
#vatsalyshyam