शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

मैं अकेला

मैं अकेला,
पथ का पथिक हुँ,
इस भरे संसार में,
जाना मुझको दूर तक है,
उस लक्ष्य के बाजार में !
कुछ बलाते,कुछ डराते,
कुछ तो चाहते हैं फसाना,
इस मोह, माया जाल में,
पर मेरा जीवन समर्पित,
इस लक्ष्य के बाजार में !
मैं अकेला! मैं अकेला! मैं अकेला!

सुधांशु तिवारी "श्याम "

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरी बात