मैं अकेला,
पथ का पथिक हुँ,
इस भरे संसार में,
जाना मुझको दूर तक है,
उस लक्ष्य के बाजार में !
कुछ बलाते,कुछ डराते,
कुछ तो चाहते हैं फसाना,
इस मोह, माया जाल में,
पर मेरा जीवन समर्पित,
इस लक्ष्य के बाजार में !
मैं अकेला! मैं अकेला! मैं अकेला!
सुधांशु तिवारी "श्याम "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें