Sudhanshu
नवकिरणें हमको बता रही,
कुछ ख्वाब हमे वो दिखा रही,
पूरब से मृदु को बजा रही ,
शंखनाद को गूजा रही,
कुछ किरणें हमको बता रही ,
मन से निशा को भगा रही,
वो कुंज ज्योति के जगा रही,
दिल मे जोश को जगा रही,
नवनिर्मित भारत दिखा रही,
संकल्प हमें ये दिला रही,
वो मंद रहे किंचित स्वर से,
रसधारा अमृत गिरा रही ,
भारत मां के जगजीवन से,
आशावादी को दिखा रही,
देख रही दुनिया हमको,
ऐसा वो कुछ बता रही,
फिर स्वर्ण राग वो दिखा रही,
जगजीवन को वो जगा रही,
नवकिरणें हमको बता रही,
कुछ ख्वाब हमें वो दिखा रही,!
सुधांशु तिवाऱी