शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

राष्ट्र सेना

कल मिले थे लोग मुझको,
कर रहे थे मन सशंकित,
दूर निर्जन वन न जाना,
काँटों से वो पथ भरा है,
लक्ष्य तुम्हारा है जहाँ पर,
वो धरा रक्त से सना है,
लोग देते दान जीवन,
मृत्यु के उस देवता को,
राष्ट्र सेना में न जाना,
कंधे मिलना ही लिखा है,
पर मेरा तन मन ये कहता,
राष्ट्र सेना को समर्पित,
है मेरा जीवन ये सारा,
चाहकर भी न रूकुँगा,
मृत्यु से मैं भी लडुँगा,
राष्ट्र के हर अस्मिता की,
हर कदम रक्षा करूंगा,
सरफरोशी गीत गाकर,
वन्दे मातरम कहुँगा !!!!
जय हिंद :जय भारत
सुधांशु तिवारी "श्याम "

मैं अकेला

मैं अकेला,
पथ का पथिक हुँ,
इस भरे संसार में,
जाना मुझको दूर तक है,
उस लक्ष्य के बाजार में !
कुछ बलाते,कुछ डराते,
कुछ तो चाहते हैं फसाना,
इस मोह, माया जाल में,
पर मेरा जीवन समर्पित,
इस लक्ष्य के बाजार में !
मैं अकेला! मैं अकेला! मैं अकेला!

सुधांशु तिवारी "श्याम "

मेरी बात